Akbar as a national Monarch. (एक राष्ट्रीय सम्राट के रूप में अकबर।)

अकबर को भारतीय इतिहास का एक महान और प्रतापी शासक एवं सम्राट माना जाता है। कुछ इतिहासकार उसे राष्ट्रीय भी कहते हैं। पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भी अपनी रचना ‘Discovery of India' में अकबर को भारतीय राष्ट्रीयता का पिता कहा है। यहाँ पर स्मरणीय है कि राष्ट्रीयता का सिद्धांत आधुनिक युग की देन है और मध्यकालीन भारत में राष्ट्रीय चेतना का वह आधुनिक युग विकसित नहीं हुआ था फिर भी अकबर को एक राष्ट्रीय सम्राट कहा जाता है क्योंकि इसने अपनी नीतियों से ऐसे तथ्यों को प्रोत्साहित किया और ऐसी परिस्थितियों को विकसित किया जिससे राष्ट्रीय चेतना प्रबल हो सकें। एक राष्ट्र निर्माता उस व्यक्ति को कहा जा सकता है जो किसी जनसमूह में राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक एकता का भान जाए और उन्हें प्रशासनिक एकता के रूप में बाध्य है । 15वीं एवं 16वीं शताब्दी में यूरोप में ऐसे शासकों का प्रादुर्भाव हुआ, जिन्हें राष्ट्रीय सम्राट (National Monarch) कहा जाता है। इनमें इंगलैंड के हेनरी सप्तम फ्रांस का लुई चौदह, प्रशा के फ्रेडरिक महान जैसे शासक अग्रगण्य है। इनके मुख्य उपलिब्ध रह रही है कि उन्होंने अपने देशों में सामंतवादी एवं विघटनकारी शक्तियों का अंत किया और भौगोलिक एवं प्रशासनिक एकता स्थापित की। भारत में भी अकबर ने एक विशाल एवं संगठित राज्य का निर्माण किया जो विभिन्न सम्प्रदायों के बीच एकता एवं सहिष्णुता की भावना पर आधारित था और जिसमें विभिन्न संस्कृति तथा परंपराओं का संतुलित एवं सुंदर समन्वय था । विविधता में एकता का जो लक्ष्य अकबर ने सफलता से प्राप्त किया वह अद्भुत है और इसलिए अकबर को एक महान शासक और राष्ट्र निर्माता के रूप में जाना जाता है।



अकबर ने एक विशाल साम्राज्य का निर्माण किया। मौर्य साम्राज्य के पतनोपरांत लगभग 1000 वर्षों के अंतराल पर एक भारत व्यापी साम्राज्य अकबर ने संगठित किया जिसमें एक रूपी शासन प्रणाली थी। अकबर ने अपने शासन के प्रथम दो दशकों में उत्तरी भारत में साम्राज्य विस्तार किया । मालवा, गांण्डवाना, राजपूताना के अनेक राज्य गुजरात, बिहार और बंगाल की विजय इस काल में सम्पन्न हुई। दूसरे चरण में अकबर ने पश्मिोत्तर सीमांत में साम्राज्य विस्तार किया जिसके फलस्वरूप कश्मीर एवं लद्दाख, काबुल, कंधार, सिंध और मकरान के क्षेत्र मुगल साम्राज्य में सम्मिलित हुए। अंतिम चरण में अकबर ने दक्षिण भारत में साम्राज्य विस्तार किया, जिसके फलस्वरूप खान देश बरार और अहमद नगर का एक बड़ा क्षेत्र उसने अपने अधिकार में ले लिया। इस तरह उत्तर में कश्मीर, दक्षिण में गोदावरी, पश्चिम में सिंध और पूरब में बंगाल तक फैले हुए क्षेत्र पर अकबर ने राजनीति एकता की स्थापना की। पश्चिमोत्तर क्षेत्र में हिन्दुकुश पर्वतमाला को पारकर अकबर ने काबुल तक साम्राज्य का विस्तार किया ।

अकबर द्वारा स्थापित इस विशाल साम्राज्य की विशिष्टता:-

अकबर द्वारा स्थापित इस विशाल साम्राज्य की विशिष्टता यह थी कि इसमें प्रशासनिक एकरूपता स्थापित की गई। इस तरह भारतीय उपमहाद्वीप में पहली बार ऐसी प्रशासनिक व्यवस्था का विकास हुआ, जिसमें स्थानीय और क्षेत्रीय भावनाओं और परम्पराओं के स्थान पर केन्द्रीय नियंत्रण एवं एकरूपता की सिद्धांत को अपनाया गया। अकबर ने मंसवादारी प्रथा का निर्माण कियां मंसवदार लोग प्रशासनिक तथा सैनिक अधिकारी थे, जिनकी वेतनमान एवं सेवा के नियम सारे राज्य में एक थे। इसकी तुलना भारतीय प्रशासनिक सेवा से भी की गई है। इस प्रकार अकबर ने प्रशासकों और सेवकों का एक मिला-जुला वर्ग विकसित किया, जो शासन के प्रति निष्ठा रखता था। प्रशासनिक एकरूपता लाने के लिए अकबर ने सभी प्रांतों में एक जैसी प्रशासनिक व्यवस्था लागू की। हर प्रांत में एक सूवेदार की नियुक्ति की गई जो प्रांतीय प्रशासन का प्रधान था। उसके सहायता के लिए हर प्रांत में दीवान, वित्त- अधिकारी, बख्सी (सैनिकों का वेतन दाता) वाकियाँ नवीश (गुप्तचर), सदर ( धार्मिक एवं न्याय संबंधी मामलों का प्रधान), काजी ( न्यायधीश) आदि की नियुक्ति हुई। प्रांत को सरकार एवं हर सरकार को परगना में विभक्त किया गया और सभी स्तरों पर प्रशासनिक एकरूपता लाई गई। प्रत्येक सरकार में 3 प्रशासनिक अधिकारी नियुक्त किये गये। इनमें फौजदार साम्राज्य प्रशासन के लिए, अमल गुजार - लगान वसूली के लिए एवं काजी- न्याय के लिए उत्तरदायी थे। इसी प्रकार हर परगना में तीन अधिकारी बहाल किये गये, जिसमें सिकंदर-साम्राज्य प्रशासन के लिए, अमल गुजारा लगान वसूली के लिए एवं काजी न्याय के लिए उत्तरदायी थे।


आर्थिक एकीकरण:-

अकबर ने आर्थिक एकीकरण के लिए भी उपाय किये। उसने अपने राज्य में लगान व्यवस्था में भी एकरूपता लाई और प्रबल व्यवस्था को लागू किया। मुद्रा प्रणाली, माप तौल के उपकरण आदि में एकरूपता लाई गई जिससे कि उत्तरी भारत में एकरूपता स्थापित हुई। यू तो शेरशाह के समय में ही अर्थव्यवस्था में एरूपता लाने के उपाय किये गये थे परंतु अकबर ने इस व्यवस्था को और सुदृढ़ एवं स्थायी आधार प्रदान किया। आर्थिक एकीकरण ने राष्ट्रीय एकीकरण के कार्य में सहायता पहुंचायी।

सांस्कृतिक एकीकरण:-

अकबर ने अपने शासनकाल में सांस्कृतिक एकीकरण के भी उपाय किये। उसने उदार धार्मिक नीति का अनुसरण किया। उसने हिन्दुओं को जजिया कर और तीर्थ भाग कर देने से मुक्त करदिया एवं बलपूर्वक धर्म परिवर्तन को अवैध घोषित कर दिया। अकबर ने हिन्दुओं के अतिरिक्त, ईसाइयों, पारसियों, सिक्खों एवं बौद्धों के साथ भी धार्मिक सहिष्णुता बरती। इन सभी धर्मों के आचारियों को उसने अपनी राजधानी फतेहपुर सिकरी में स्थित इबास्तखाना में निमंत्रित किया । उसने विभिन्न धर्मों के उपदेशों का संकलन करके 'दीन-ए-इलाही के रूपमें एक ऐसी आचारसंहिता (Code of Corduct) प्रस्तुत किया जिसके अनुसार सभी धर्मों के अनुयायी पूरी निष्ठा रखते हुए भी कार्य कर सकते थे। अशोक के धर्म (धम्म) की तरह दीन-ए-इलाही भी विभिन्न धर्मावलम्बियों के बीच एकता और सद्भावना लाने का एक सराहनीय प्रयास था। अकबर ने हिन्दू धर्म और इस्लाम के बीच अलगाव एवं भातियों को दूर करने के लिए दोनों ही धर्मों से संबंधित रचनाओं का अनुवाद करवाया ताकि उसके सिद्धांत को अच्छे ढंग से समझ सकें। उसने मुगल दरबार में हिन्दू उत्सवों और प्रभावों को अपनाया ताकि एक संभावित परम्परा का विकास हो सके। इसी तरह अकबर ने संगीत, चित्रकला और स्थापत्य कला के क्षेत्रों में एकता लाने का प्रयास किया जिससे भारत में एक समन्वित सांस्कृतिक परम्परा का विकास संभव हो सका ।

स्थापत्य कला में एक समन्वित शैली का विकास:-

अकबर ने अपने शासन काल में स्थापत्य कला में एक समन्वित शैली का विकास किया जिसमें ईरानी शैली और राजपूत शैली के साथ-साथ भारत के विभिन्न शैलियों का समावेश था। इस समन्वित शैली का उदाहरण फतेहपुर सिकरी के अनेक भवनों में देखें जा सकते हैं। अकबर ने जो समन्वित शैली विकसित की उसे उसके उत्तराधिकारियों ने बनायें रखा और जहाँगीर, शाहजहाँ, औरंगजेब एवं प्रवर्ती शासकों के काल में भी भवन निर्माण कला का यह समन्वित रूप बना रहा । अकबर ने संगीत और चित्रकला में भी समन्वित शैली का विकास किया। मुगल दरबार में

ईरानी शैली समन्वित रूप को चित्रकला में विकसित हुआ कहा जाता है कि मुगल दरबार में जो शैली विकसित हुई उसका रूप भारतीय था जबकि उसकी आत्मा ईरानी थी। इसमें यूरोपीय शैली की विशेषताएँ सम्मिलित थी। इसलिए मुगल शैली अत्यधिक उन्नत और परिपक्व बनी रही। इसका विकास जहाँगीर के समय में चरमोत्कर्ष पर पहुँच गया। संगीत में भी ईरानी और भारतीय गायन शैलियों के समन्वय से एक नयी मिश्रित परम्परा विकसित हुई इसका सबसे उत्कृष्ट प्रदर्शन तानसेन की गायन शैली में हुआ । यही समन्वित शैली हिन्दुस्तानी शैली कहलायी । अकबर ने दरबार में ऐसी प्रथाएँ और रीति-रिवाज विकसित किये जिससे कि दरबार में समन्वित सांस्कृतिक परम्परा का विकास हुआ। उसने नौ रोज का व्यवहार मुगुले का राष्ट्रीय व्यवहार बना दिया। उसने राजपूतों से झरोखा दर्शन और कलादान की पद्धति मुगल दरबार में लागू की। अकबर ने हिन्दू और मुस्लिम समाज में व्याप्त कुरीतियों ओर बुराइयों को दूर किया। उसने

अपने आप को हिन्दुओं और मुसलमानों का शुभ चिंतक माना:-

अपने आप को हिन्दुओं और मुसलमानों का शुभ चिंतक माना। अकबर की नीति की खास विशेषता यह थी कि उसने किसी एक धर्म का सम्प्रदाय से ही अपना संबंध नहीं रखा बल्कि उसने सभी वर्गों, सम्प्रदाय और क्षेत्रों को अपनी प्रजा के रूप में एक जैसा अधिकार और सुविधा प्रदान की जो कि भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना थी।

इस प्रकार अकबर की उपलब्धियों और उसके प्रयास ही दिशा में एकीकरण के उद्देश्य से प्रेरित थी। उसने राजनैतिक और भौगोलिक एकता स्थापित की प्रशासनिक एवं आर्थिक एकरूपता लाई और सांस्कृतिक क्षेत्र में विभिन्न धर्मों ओर सम्प्रदायों के बीच एकता स्थापित करके विविधता में एकता (Unity in diversity) का उद्देश्य प्राप्त करना चाहा।

निष्कर्ष:-

अकबर का शासन भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय है, जो भारतीय उपमहाद्वीप के विविध राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक परिदृश्यों को एकीकृत करने के उनके दूरदर्शी प्रयासों से चिह्नित है। उनकी प्रशासनिक एकरूपता, आर्थिक समेकन और सांस्कृतिक एकीकरण की नीतियों ने एक एकीकृत और समृद्ध साम्राज्य की नींव रखी। धार्मिक सहिष्णुता और समावेशिता पर अकबर का जोर उनके प्रजा के बीच साम्प्रदायिक विभाजनों से ऊपर उठकर एक सामंजस्यपूर्ण भावना को बढ़ावा दिया। स्थापत्य शैलियों, कलात्मक परंपराओं और प्रशासनिक प्रथाओं के मिश्रण को प्रोत्साहित करके, अकबर ने विविधता में एकता की एक विरासत बनाई जो उनके उत्तराधिकारियों और भारतीय इतिहास की व्यापक धारा को प्रभावित करती रही। एक राष्ट्र निर्माता और सांस्कृतिक समन्वय के समर्थक के रूप में उनके योगदान, उन्हें भारत के सबसे महान और प्रबुद्ध शासकों में से एक के रूप में स्थायी विरासत के रूप में स्थापित करते हैं।

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